कबीर के दोहे मीठी वाणी हिंदी अर्थ के साथ – कबीर दास एक महान संत हे । कबीर दास द्वारा बनाए गए द्विपदों को “कबीर के दोहे” और “कबीर के मीठी वाणी” कहा जाता है। कबीर दास जी अपने दोहे में मानव संसार कैसा होना चाहिए इसकी विवरण अपने दोहे में अच्छे तरह से हमें समजाये हे। हम कबीर दास जी की मीठी वाणी को सुनकर अपने जीवन में उसे इस्तेमाल करके इस जीवन को और बी बेहतर बना सकते हे। हम इस पोस्ट के द्वारा संत कबीर दास जी के अदबुत दोहे और कबीर दस के मीठी वाणी को अर्थ सहित विवरण करके आपको समझाने की कोशिश किये हे। अगर आपको हमारे इस कोशिश से तोड़े बी मदत मिले तो हमारा ये काम बहुत बढ़िया तरह से सफल होगा।
मीठी वाणी सुनने के लिए हम सब उत्सुकः हे। मनुष्य मीठी वाणी से बात करना चाहिए। कबीर दास जी बी लोगो को मीठी वाणी से बात करने की सलाह देते थे। उस समय पे कबीर दास जी बी अपने दोहे के माद्यम से लोगो को मीठी वाणी से बात करना कितना आवश्यक हे इस संसार के लिए उसे अचे तरह से बताये हे। आईये हम अभी कबीर के दोहे मीठी वाणी को पड़ते हे और हम बी मीठी वाणी से बात करना सीखते हे।
कबीर के दोहे मीठी वाणी
कबीर के दोहे हिन्दी साहित्य की अनमोल धारा हैं। उनके दोहों में छिपी मीठी वाणी और गहरे सत्य ने लोगों को आकर्षित किया है। इन दोहों में सर्वाधिक चमत्कारिक बात यह है कि वे विचारों को सरलता से व्यक्त करते हैं और सीधे दिल को छू लेते हैं। इन्हे पढ़कर और समझकर आप अपने जीवन में प्रारम्भिक बदलाव ला सकते हैं। आइए, कुछ मशहूर मीठी वाणी पर 10 दोहे को देखें:
aisi vani boliye doha meaning in hindi
1) ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।।
aisi vani boliye doha meaning in hindi भावार्थ: कबीर दास जी अपने इस मीठी वाणी से कहते हैं, कि हर एक मनुष्य को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को आनंदित करे और उनक मन खुशी से भरे। ऐसी भाषा सुनने वालो को तो सुख का अनुभव कराती ही है, इसके साथ स्वयं का मन भी आनंद का अनुभव करता है सात में मन को सुकून बी मिलता हे। ऐसी ही मीठी वाणी के उपयोग से हम किसी भी व्यक्ति व मनुष्य को उसके प्रति हमारे प्यार, आदर और गौरव का एहसास करा सकते है।

2) बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।
भावार्थ: कबीर दास जी अपने इस मीठी वाणी से कहते हैं, कि यदि कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो उसे पता है कि उसकी वाणी एक अनमोल रत्न है और उसे कैसे कहाँ इस्तेमाल करना चाहिए। इसे व्यर्थ नहीं करना चाहिए। और वह व्यक्ति हर शब्द को ह्रदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुंह से बाहर आने देना चाहिए।
3) अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।
भावार्थ 1: कबीर दास जी अपने इस मीठी वाणी से कहते हैं, कि बहुत अधिक बोलना बी अच्छी बात नहीं है और ज़रूरत से ज्यादा चुप रहना बी ठीक नहीं है। बिलकुल उसी तरह जैसे बहुत ज्यादा बारिश भी अच्छी नहीं और बहुत ज्यादा धूप भी ठीक नहीं रहती है।
भावार्थ 2: कबीर दास जी अपने इस मीठी वाणी से कहते हैं, कि मनुष्य सही समय आने पर आवश्यकता अनुसार ही अपने शब्दों का उपयोग अवश्य करना चाहिए। बहुत ज्यादा बारिश और दूप इस भूमि के लिए कैसे हानिकारक होता हे वैसे ज्यादा बात करना और ज्यादा चुप रहना बी मनुष्य को हानिकारक हो सकता हे।
4) शब्द सहारे बोलिए, शब्द के हाथ न पाव।
एक शब्द औषधि करे, एक शब्द करे घाव।।
भावार्थ: कबीर दास जी अपने इस मीठी वाणी से कहते हैं, कि मनुष्य अपना मुख से जो भी बोलो, सम्भाल कर बोलना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह कि जब भी बोलने के समय सोच समझकर बोलिये क्योंकि शब्द के हाथ पैर नहीं होते हैं। किन्तु इस शब्द के अनेकों रूप हैं। आगे जाके यही शब्द अनेक रूप धारण कर सकता हे। यही शब्द कहीं जगह औषधि का कार्य कर सकता है। कहीं जगह घाव बी पहुँचा सकता है अर्थात कटु शब्द दुःख देता है।
5) कागा कोका धन हरै, कोयल काको देत।
मीठा शब्द सुनाय के, जग अपनो करि लेत।।
भावार्थ: कबीर दास जी अपने इस मीठी वाणी से कहते हैं, कि न तो कौवा किसी का धन नहीं चुराता और न ही कोयल किसी को कुछ देती है। लेकिन कोयल कि मधुर बोली (आवाज़) सबको प्रिय लगती है। उसी तरह आप कोयल के समान अपनी वाणी में मिठास का समावेश करके संसार को अपना बना लो। ऐसे करके आप इस संसार, आपकी मीठी वाणी (मीठी बोली) सुनने के लिए तरसे वैसा कर सकते हे।
6) कुटिल वचन सबतें बुरा, जारि करै सब छार।
साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार।।
भावार्थ: कबीर दास जी अपने इस मीठी वाणी से कहते हैं, कि कटु शब्द बहुत बुरे होते हैं और उसे बोलने की वजह से पूरा शरीर जलने लग जाता है। जबकि मधुर वचन शीतल जल की तरह होता हैं और जब बोले जाते हैं तो ऐसा लगता है कि अमृत बरस रहा है। कटु शब्द न कहने से शब्द बोलनेवाला और शब्द सुननेवाला दोनों को लाभ होजाता हे।
7) बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।
भावार्थ: कबीर दास जी अपने इस मीठी वाणी से कहते हैं, कि जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला. जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है.
8) पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडत भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़ेसो पंडत होय।।
भावार्थ: कबीर दास जी अपने इस मीठी वाणी से कहते हैं, कि बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर बी संसार में कितने लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न बन सके। अगर कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले और उसे सही से समाज ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।
9) साधु ऐसा चाहए, जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गह रहै, थोथा देई उड़ाय।।
भावार्थ: कबीर दास जी अपने इस मीठी वाणी से कहते हैं, कि इस संसार में ऐसे सज्जनो की जरूरत हे की जैसे अनाज साफ़ करनेवाला सूप होता हे। जो सार्थक को बचा लेगा और नीरर्तक को उड़ा देंगे।
10) माला फेरत जुग भया, फरा न मन का फेर।
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।।
भावार्थ: कबीर दास जी अपने इस मीठी वाणी से कहते हैं, कि कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में मोती की माला लेकर घुमाता रहता हे, लेकिन ऐसा करने से उसकी मन की भय और भाव नहीं बदलता हे। उसकी मन की हलचल बी शांत नहीं होती हे। ऐसा करने से अच्छा हे वो व्यक्ति अपनी मन की मोतियों को बदल दे वो अपनी मन में जो बुरे विचार हे उसे बदल दे।
11) जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ।
में बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।
भावार्थ: कबीर दास जी अपने इस मीठी वाणी से कहते हैं, कि मनुष्य प्रयत्न करते रहना चाहिए जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ पा ही लेते हैं। जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है। लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते हे।
12) जब में था तब हरी नहीं, अब हरी है में नाही।
सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही।।
भावार्थ: कबीर दास जी अपने इस मीठी वाणी से कहते हैं, कि जब मैं अपने अहंकार में डूबा था तब प्रभु को न देख पाता था – लेकिन जब गुरु ने ज्ञान का दीपक मेरे भीतर प्रकाशित किया तब अज्ञान का सब अन्धकार मिट गया • ज्ञान की ज्योति – से अहंकार जाता रहा और ज्ञान के आलोक में प्रभु को पाया।
13) कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी।
एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी॥
भावार्थ: कबीर दास जी अपने इस मीठी वाणी से कहते हैं, कि अज्ञान की नींद में सोए क्यों रहते हो? ज्ञान की जागृति को हासिल कर प्रभु का नाम लो।सजग होकर प्रभु का ध्यान करो।वह दिन दूर नहीं जब तुम्हें गहन निद्रा में सो ही जाना है – जब तक जाग सकते हो जागते क्यों नहीं? प्रभु का नाम स्मरण क्यों नहीं करते?
14) आछे / पाछे दिन पाछे गए हटी से किया न हेत।
अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत॥
भावार्थ: कबीर दास जी अपने इस मीठी वाणी से कहते हैं, कि देखते ही देखते सब भले दिन अच्छा समय बीतता चला गया – तुमने प्रभु से लो नहीं लगाई – प्यार नहीं किया समय बीत जाने पर पछताने से क्या मिलेगा? पहले जागरूक न थे – ठीक उसी तरह जैसे कोई किसान अपने खेत की रखवाली ही न करे और देखते ही देखते पंछी उसकी फसल बर्बाद कर जाएं।
15) झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद।
खलक चबैना काल का, कुछ मुंह में कुछ गोद।।
भावार्थ: कबीर दास जी अपने इस मीठी वाणी अरे जीव ! तू झूठे सुख को सुख कहता है और मन में प्रसन्न होता है? देख यह सारा संसार मृत्यु के लिए उस भोजन के समान है, जो कुछ तो उसके मुंह में है और कुछ गोद में खाने के लिए रखा है।
Award Films About Kabir Das ->
- Bhakta Kabir, a 1942 Indian film
- Mahatma Kabir (film), a 1947 Indian Kannada-language film
- Mahathma Kabir, a 1962 Indian Kannada film
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- Sant Kabir Das Biography in Hindi [1398 Or 1448]
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