sant tulsidas ke dohe in hindi – Saint Tulsidas has written many couplets in his life. By choosing the valuable 24+ couplets of Tulsidas, here we have explained them in Hindi with meaning.
संत तुलसीदास के जीवन परिचय – Biography Of Tulsidas
गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म सन 1554 ई में बांदा जिले के राजापुर गांव में हुवा था। तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम और माता का नाम हुलसी था। वह सरयूपारीण ब्राह्मण थे, उनका परिवार (सोरो) उत्तर प्रदेश में रहता था।
विकिपीडिया के हिसाब से तुलसीदास के जन्म १५११(1511) व १५६८(1568) में हुवा था।
तुलसीदास को जन्म से ही अपशकुन माना जाता था और मारने की साजिश रची जा रही थी। इनकी दूसरी माता का नाम चुनिया देवी थी।
तुसलीदास का पहला नाम रामबोला था। तुलसीदास के गुरु का नाम नरहरि हे उन्ही ने तुलसीदास का नाम विक्रम सम्वत 1561 में रामबोला से बदलकर तुलसीदास रखा था।
तुलसीदास जी 5 साल तक सोरो में रहकर अयोद्या से फिर वे काशी चले गए और पंचगंगा घाट पर ठहरे उनकी भेंट एक अन्य महात्मा शेष सनातन से हुयी जो उनके दूसरे गुरु थे। महात्मा शेष सनातन गुरु से तुलसीदास ने वेद-पुराण आदि का ज्ञान प्राप्त किया।
तुलसीदास का विवाह संवत 1583 में जेष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को हुवा, तुलसीदास का पत्नी का नाम रत्नावली था। तुलसीदास अपनी पत्नी के प्रेम में बहुत अनुरक्त रहते थे लेकिन पत्नी के डाट के कारण तुलसीदास के मन में वैराग्य उत्पन्न होगया था और ये काशी चले गए।
गोस्वामी तुलसीदास को हिंदी साहित्य में वह स्थान प्राप्त हुवा जो स्थान संस्कृत साहित्य में वाल्मीकि एवं वेदव्यास को प्राप्त हुवा।
रामचरित मानसा , गीतावली, कवितावली, विनय पत्रिका आदि गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा लिखी गयी हुयी रचनाएँ हे।
संत तुलसीदास अपनी आदिक जीवन काशी, अयोद्या और चित्रकूट में बिताया था। तुलसीदास के मृत्यु 1583 लगभग हुई।
गोस्वामी तुलसीदास का साहित्य में स्थान
हिंदी साहित्य में संत तुलसीदास जी का वही सर्वोच्चा स्थान प्राप्त हे जो स्थान संस्कृत साहित्य में वाल्मीकि एवं वेदव्यास जी का हे। जब तक भारतीय साहित्य का अस्तित्वा रहेगा उस वक्त तक गोस्वामी तुलसीदास का नाम अमर रहेगा।

उनकी काव्य की प्रशंसा तो पाश्चात्य विद्वानों ने बी मुक्त कंट सकी हे। जार्ज जरियासें ने तुलसीदास को गौतम बुद्ध केबाद सबसे बड़ा जन नायक कहा था। आचार्य रामचंद्र शुक्ल का यह कथन उचित ही लगता हे, “यह एक कवी ही हिंदी को एक प्रौढ़ साहित्य भाषा सिद्द करने के लिए काफी हे। “
तुलसीदास के १२ अद्भुत रचनाएँ
- जानकी मंगल
- पार्वती मंगल
- दोहावली
- कवितावली
- विनय पत्रिका
- रामचरितमानस
- रामलला-नहछू
- रामाज्ञा प्रश्न
- बरवै रामायण
- वैराग्य संदीपनी
- श्रीकृष्ण गीतावली
- हनुमानबाहुक
संत तुलसीदास अपने जीवन में बहुत दोहे लिखी हे। उनमे से बहुमूल्य 24+ तुलसीदास के दोहे को चुनकर यहाँ हम हिंदी में अर्थ सहित विवरण किया हे। आप संत तुलसीदास के द्वारा लिखी गयी इन दोहे को पढ़कर तुलसीदास के दोहे को सही से समझकर अपने जीवन में अनुशासन कर सकते हो।
तुलसीदास के ये अदभुत बजन सुने
Sant Tulsidas Ke Dohe In Hindi With Meaning – संत तुलसीदास के दोहे अर्थ सहित |
तुलसीदास के दोहे – 1
वाम दिसी जानकी, लखन दाहिनी ओर |
ध्यान सकल कल्याणमय, सुरतरु तुलसी तोर ||
तुलसीदास अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हे की, “भगवान श्रीरामचंद्र के दाहिने ओर श्रीजानकी है। बाहिने ओर श्रीलक्ष्मण है. इनका सब का ध्यान कल्याणमय है। हे तुलसी, तेरे लिए तो मानो ये मनचाहा फल देनेवाला कल्पवृक्ष ही है।”
तुलसीदास के दोहे – 2
सीता लखन समेत प्रभु, सोहत तुलसीदास |
हरषत सुर बरषत सुमन, सगुन सुमंगल बास ||
तुलसीदास अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हे की, श्री सीता और लक्ष्मण सह प्रभु रामचंद्र शोभा दे रहे है और देवतागण आनंदसे पुष्पवृष्टि कर रहे है। भगवान का यह सगुन स्वरुप सुमंगल – परम कल्याणकारक है।
तुलसीदास के दोहे – 3
पंचबटी बट बिटप तर, सीता लखन समेत |
सोहत तुलसीदास प्रभु, सकल सुमंगल देत ||
तुलसीदास अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हे की, पंचवटी में वटवृक्ष के निचे सीता लक्षमण के साथ में रामप्रभु शोभा दे रहे है। तुलसीदास कहते है की, इस प्रकार भगवान का ध्यान करनेसे सब मांगल्य की प्राप्ति होती है।
तुलसीदास के दोहे – 4
चित्रकूट सब दिन बसत, प्रभु सिय लखन समेत |
राम नाम जप जापकहि, तुलसी अभिमत देत ||
तुलसीदास अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हे की, श्रीसीता और लक्ष्मण सह प्रभु रामचंद्र का चित्रकूट में हर समय निवास रहता है। तुलसीदास कहते है की वह रामप्रभु रामनाम का जप करनेवाले को इच्छित फल देते है।
तुलसीदास के दोहे – 5
पय अहार फल खाई जपु, राम नाम षट मास |
सकल सुमंगल सिद्धि सब, करतल तुलसीदास ||
तुलसीदास अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हे की, छे महीने तक केवल दूध या फलाहार करके रामनाम का जप करो। तुलसीदास कहते है की, ऐसा करनेसे सबप्रकारसे कल्याण होकर सब सिद्धि प्राप्त होती है।
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तुलसीदास के दोहे – 6
राम नाम मनि दिप धरु, जिह देहरी द्वार |
तुलसी भीतर बाहेरहु, जौ चाहसि उजियार ||
तुलसीदास अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हे की, तुलसीदास कहते है, अगर आप भीतर ओर बाहर प्रकाश की इच्छा करते है। तो इस मुखरूपी द्वार के जिव्हारुपी चौकट पर रामनाम का रत्नदीप रखदे।
तुलसीदास के दोहे – 7
हिय निर्गुण नयनन्हि सगुन, रसना राम सुनाम |
मनहु पुरट संपुट लसत, तुलसी ललित ललाम ||
तुलसीदास अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हे की, ह्रदय में निर्गुण ब्रम्ह का स्मरण, नेत्रों के सामने सुंदर सगुण स्वरुप और जिव्हासे रामनाम का जप कीजिये. तुलसीदास कहते है की इससे मानो ऐसा लगेगा की सोने के सुंदर कुंदन में मनोहर रत्न शोभा दे रहा है।
तुलसीदास के दोहे – 8
ब्रम्हा राम ते नामु बड बार दायक बार दानी |
रामचरित सतकोटि मह लिय महेस जिय जानि ||
तुलसीदास अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हे की, निर्गुण ऐसे ब्रम्ह और सगुन साकार राम इनसे राम नाम ही अधिक श्रेष्ठ है। वो वरदायक ऐसे देवोको भी वर देनेवाला है। इस राम नाम की महिमा जानकर ही शंकर भगवन ने सम्पूर्ण रामचरित्र के शतकोटी श्लोको में से दो अक्षरों का ‘राम’ नाम ही ग्रहण किया।
तुलसीदास के दोहे – 9
राम नाम पर राम ते, प्रीति प्रतीति भरोस |
सो तुलसी सुमिरत सकल, सगुण सुमंगल कोस ||
तुलसीदास अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हे की, तुलसीदास कहते है, जो रामनाम परायण है और रामनाम में रामसे भी अधिक विश्वास, प्रीति रखते है, वो रामनाम का स्मरण करतेही समस्त सद्गुण और सुमंगल का कोष, खजाना बन जाते है।
तुलसीदास के दोहे – 10
हरण अमंगल अघ अखिल, करण सकल कल्याण |
रामनाम नित कहत हर, गावत बेद पुराण ||
तुलसीदास अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हे की, रामनाम ये सब अमंगल और पापोका हरण करनेवाला है और सब प्रकारसे कल्याण करनेवाला है। इसीलिए श्री शंकर सदा सर्वदा रामनाम जपते है और वेदपुराण भी नाम का महत्त्व वर्णन करते है।
तुलसीदास के दोहे – 11
तुलसी प्रीति प्रतीति, सो राम नाम जप जाग |
किए होई बिधि दाहिनो, देइ अभागेही भाग ||
तुलसीदास अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हे की, तुलसीदास कहते है की प्रेमसे, विश्वास से रामनाम का जपयज्ञ किया तो विधि भी अनुकूल होती है और अभागी मनुष्य भी भाग्यवान बनता है।
तुलसीदास के दोहे – 12
जल थल नभ गति अमित अति, अग जग जीव अनेक |
तुलसी तो से दिन कह, राम नाम गति एक ||
तुलसीदास अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हे की, जग में अनेक प्रकार के असंख्य जीव है। किसीकी गति चर में है तो किसीकी जल में; किसीकी पृथ्वी पर तो किसीकी आकाश में है; परन्तु हे तुलसी, तेरेजैसे दिनों के लिए रामनाम ही एकमात्र गति है।
तुलसीदास के दोहे – 13
रामभरोसो राम बल, रामनाम बिस्वास |
सुमिरत सुभ मंगल कुसल, मांगत तुलसीदास ||
तुलसीदास अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हे की, तुलसीदास ये ही मांगते है की उनका विश्वास केवल रामनाम पर ही रहे; केवल राम का ही बल उन्हें मिले। और जिसके मात्र स्मरणसे सब शुभ, मंगल और कुशलता की प्राप्ति होती है, उस रामनाम में ही दृढ़ विश्वास रहे।
तुलसीदास के दोहे – 14
रसना सापिनी बदन बिल, जे न जपहि हरिनाम |
तुलसी प्रेम न राम सो, ताहि विधाता बाम ||
तुलसीदास अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हे की, जो हरिनाम जपते नहीं उनकी जिव्हा सर्प के प्रमाण है और उनका मुख सर्प का घर है। जिसको रामप्रेम नहीं उसको विधाता प्रतिकूल होगया है ऐसेही कहना पड़ेगा।
तुलसीदास के दोहे – 15
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार |
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर ||
तुलसीदास अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हे की, हे मनुष्य ,यदि तुम भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहते हो तो मुखरूपी द्वार की जीभरुपी देहलीज़ पर राम-नामरूपी मणिदीप को रखो।
तुलसीदास के दोहे – 16
नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु |
जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास ||
तुलसीदास अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हे की, राम का नाम कल्पतरु (मनचाहा पदार्थ देनेवाला )और कल्याण का निवास (मुक्ति का घर ) है,जिसको स्मरण करने से भाँग सा (निकृष्ट) तुलसीदास भी तुलसी के समान पवित्र हो गया |
तुलसीदास के दोहे – 17
तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर |
सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि ||
तुलसीदास अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हे की, सुंदर वेष देखकर न केवल मूर्ख अपितु चतुर मनुष्य भी धोखा खा जाते हैं। सुंदर मोर को ही देख लो उसका वचन तो अमृत के समान है लेकिन आहार साँप का है।
तुलसीदास के दोहे – 18
सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु |
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ||
तुलसीदास अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हे की, शूरवीर तो युद्ध में शूरवीरता का कार्य करते हैं ,कहकर अपने को नहीं जनाते। शत्रु को युद्ध में उपस्थित पा कर कायर ही अपने प्रताप की डींग मारा करते हैं।
तुलसीदास के दोहे – 19
सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि |
सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइ हित हानि ||
तुलसीदास अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हे की, स्वाभाविक ही हित चाहने वाले गुरु और स्वामी की सीख को जो सिर चढ़ाकर नहीं मानता ,वह हृदय में खूब पछताता है और उसके हित की हानि अवश्य होती है।
तुलसीदास के दोहे – 20
मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक |
पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक ||
तुलसीदास अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हे की, मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने-पीने को तो अकेला है, लेकिन विवेकपूर्वक सब अंगों का पालन-पोषण करता है।
तुलसीदास के दोहे – 21
सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस |
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||
तुलसीदास अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हे की, मंत्री, वैद्य और गुरु – ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से (हित की बात न कहकर ) प्रिय बोलते हैं तो (क्रमशः ) राज्य,शरीर एवं धर्म – इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है।
तुलसीदास के दोहे – 22
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर |
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर ||
तुलसीदास अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हे की, मीठे वचन सब ओर सुख फैलाते हैं। किसी को भी वश में करने का ये एक मन्त्र होते हैं इसलिए मानव को चाहिए कि कठोर वचन छोडकर मीठा बोलने का प्रयास करे।
तुलसीदास के दोहे – 23
सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि |
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि ||
तुलसीदास अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हे की, जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते हैं वे क्षुद्र और पापमय होते हैं। दरअसल ,उनका तो दर्शन भी उचित नहीं होता।
तुलसीदास के दोहे – 24
दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान |
तुलसी दया न छांड़िए ,जब लग घट में प्राण ||
तुलसीदास अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हे की, मनुष्य को दया कभी नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि दया ही धर्म का मूल है और इसके विपरीत अहंकार समस्त पापों की जड़ होता है।
गोस्वामी तुलसीदास एक महँ कवी और समाज सुदारक थे। हम इस पोस्ट के माद्यम से संत तुलसीदास के जीवन परिचय और उनके द्वारा रचित हुवे तुलसीदास के दोहे को हिंदी में अर्थ सहित विवरण करने की कोशिश किये हे। हमारा ये कोशिश आप सबको पसंद आया तू हमारा काम सफल हुवा।